Monday, November 25, 2019

Yellow Fever पीत-ज्वर (पीला बुखार) Homeopathic medicine and precautions

पीत-ज्वर (पीला बुखार) (Yellow Fever)


परिचय : पीत-ज्वर बहुत अधिक भयानक रोग है। यह रोग अधिकतर बंदर-मच्छर के कारण होता है। इसे पीला बुखार भी कहते हैं। इस रोग को पैदा करने वाले मच्छरें जहाज और बंदरगाह के आस-पास पैदा होते हैं, इसलिए इन्हें बंदर-मच्छर कहते हैं।
यह ज्वर एक प्रकार की लरछुत बीमारी होती है, गर्म देशों में जैसे-दक्षिण अमेरिका, पश्चिम भारत के टापू, पश्चिमी अफ्रीका आदि देशों में अधिकतर यह रोग होता है। स्टैगोमिया नामक एक तरह का मच्छर है जो इस रोग के बीज या जहर को शरीर में फैलाता है।
पीत-ज्वर की चार अवस्था होती हैं :
1. अंकुरावस्था (पेरिओड ऑफ इनकुबेशन)।
2. ज्वरा-वस्था (फीवर स्टेज)।
3. विज्वरावस्था (स्टेज ऑफ रेमिशन)।
4. पतनावस्था (स्टेज ऑफ कोल्लाप्से)।
अंकुरावस्था :
स्वस्थ शरीर में इस रोग का प्रभाव होने पर इसके लक्षण 1 से 3 दिनों तक रहता है। इस अवस्था को अंकुर अवस्था कहते हैं। रोगी का शरीर सुस्त हो जाता है, भूख कम लगती है और जी मिचलाता है।
विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. आर्सेनिक : यदि रोगी का शरीर अधिक सुस्त हो तो उपचार करने के लिए आर्सेनिक औषधि-6 शक्ति का उपयोग करना लाभदायक होता है।
2. इपिकाक : अंकुरावस्था होने पर यदि अधिक जी मिचला रहा हो तो उपचार करने के लिए इस औषधि की 3 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
ज्वरावस्था :
रोगी को अधिक ठंड लगती हैं, कंपकंपी होती है, तेज बुखार भी रहता है, शरीर का ताप 101-106 डिग्री तक हो जाता है, नाड़ी तेज हो जाती है, चेहरा उदास रहता है, शरीर से बदबू आती है, सिर में तेज दर्द होता है, शरीर के कई अंगों में दर्द होता है, पेशाब थोड़ी सी मात्रा में, कब्ज और बेचैनी होती है। इस प्रकार के लक्षण होने पर इस अवस्था को ज्वरावस्था कहते हैं।
विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. कैम्फर : ज्वरावस्था में यदि रोगी को अधिक तेज ठंड लग रही हो और शरीर में कंपकंपी हो रही हो तो उपचार करने के लिए कैम्फर-3 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
2. बेलेडोना : ज्वरावस्था में यदि रोगी को अधिक तेज बुखार हो तो चिकित्सा करने के लिए इस बेलेडोना औषधि की 3 शक्ति का उपयोग करें।
3. ऐकोनाइट : ज्वरावस्था में अधिक बुखार हो तो उपचार करने के लिए ऐकोनाइट की 3x मात्रा का उपयोग लाभदायक है।
4. सिमिसिफ्यूगा : ज्वरावस्था होने पर यदि शरीर में तेज दर्द हो रहा हो तो उपचार करने के लिए इस औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है।
5. इपिकाक : इस बुखार में रोगी को अधिक उल्टी या जी मिचला रहा हो तो चिकित्सा करने के लिए इस औषधि की 3 शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
6. ब्रायोनिया या जेल्स : पीत ज्वर में यदि बुखार 24 घंटे में कभी भी कुछ कम न हो तो रोग को ठीक करने के लिए ब्रायोनिया-3 या जेल्स की 3x मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
विज्वरावस्था :
24 से लेकर 60 घंटे तक बुखार रहने के बाद की अवस्था को विज्वरावस्था कहते हैं। इस अवस्था में यदि दर्द ठीक होता है तो बुखार भी ठीक हो जाता है। इस अवस्था से पीड़ित रोगी की जब अच्छी तरह से देख-भाल की जाती है तो वह जल्दी ही ठीक हो सकता है और पतनावस्था नहीं आती लेकिननींद न आना, अजीर्ण या राक्षसों की तरह भूख लगना, शरीर का पीला होना आदि लक्षण हो सकते हैं।
विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. काफिया : विज्वरावस्था होने पर नींद न आ रही हो तो उपचार करने के लिए इस काफिया औषधि की 6 शक्ति का उपयोग करना लाभकारी है।
2. आर्सेनिक : विज्वरावस्था में रोगी को यदि गहरी नींद आ रही हो, शरीर सुस्त हो गया हो और शरीर पीला पड़ गया हो तो रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग फायदेमंद है।
3. मर्क : विज्वरावस्था में रोगी का शरीर पीला पड़ गया है तो चिकित्सा करने के लिए इस औषधि का उपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार के लक्षण होने पर आर्सेनिक की 3 शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
पतनावस्था :
इस अवस्था में शरीर की त्वचा पीली पड़ जाती है, बहुत उल्टी आती है या जी मिचलता रहता है, पेट में जलन होती है, काली उल्टी होती है, दस्ततथा उल्टी में कुछ काले खून के साथ कफ जैसा पदार्थ निकलता है। पेशाब काला होता है, शरीर के कई स्थानों या यंत्रों से खून बहने लगता है, शरीर बर्फकी तरह ठंडा हो जाता है, अधिक बेचैनी होती है, रोगी रोने-चिल्लाने लगता है, हिचकी आती है, ऐंठन होती है, रोगी अपना होशो-हवास खो देता है आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. कैडमियम-सल्फ : पतनावस्था में रोगी को काले रंग की उल्टी आए तो उपचार करने के लिए इस कैडमियम-सल्फ औषधि की 3 या 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए।
2. क्रोटेलस : पतनावस्था होने पर चिकित्सा करने के लिए इस क्रोटेलस औषधि की 3 या 6 शक्ति का उपयोग सबसे अच्छा होता है।
3. आर्सेनिक : इस औषधि की 3x या 6 शक्ति की मात्रा के द्वारा भी इस रोग को ठीक किया जा सकता है। वैसे यह अवस्था तीन से चार घण्टों से ज्यादा नहीं रहती है।
प्रतिषेधक चिकित्सा :
सिमिसि-3, 6 या बैप्टी- θ, 1x।
पीत-ज्वर को ठीक करने के लिए विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. ऐकोनाइट : ज्वरावस्था से ठंड लगने के बाद शरीर की गर्मी 102 डिग्री या उससे ऊपर होना, शरीर लाल होना, रूखा रहना और नाड़ी भारी, कड़ी और तेज होना, प्यास बहुत तेज होना, चेहरा लाल पड़ना, सिर में दर्द होना तथा उल्टी में बलगम या पित्त आना आदि लक्षण हो तो चिकित्सा करने के लिए इस औषधि की 3x या 6 मात्रा का उपयोग लाभदायक है।
2. रुबिनीका कैम्बर : बुखार होने की अवस्था के शुरू में और तेज तथा बहुत देर तक ठंड लगने वाली अवस्था तथा कंपकंपी होने पर इस औषधि के एक-एक बूंद लगभग 10-15 मिनट के अंतर पर सेवन करना चाहिए।
3. बेलाडोना : दिमाग में खून अधिक हो जाने पर आंखें लाल होना, सिर की नसें फूल जाना, नाड़ी भारी और तेज होना, प्रलाप होना, दांत को कटकटाने की इच्छा होना आदि लक्षण होने पर उपचार करने के लिए इसकी 3 या 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
4. ऐण्टिम-टार्ट : यदि रोगी में जी अधिक देर तक मिचल के लक्षण दिखाई दे तो चिकित्सा करने के लिए इस ऐण्टिम-टार्ट औषधि की 3 विचूर्ण या 6 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
5. ब्रायोनिया : मलाशय से सम्बन्धित गड़बड़ी के लक्षण होने जैसे- जीभ सफेद या पीली पड़ जाना, होंठ सूख जाना, कब्ज की समस्या रहना, उल्टी आना तथा उल्टी करने की इच्छा करना आदि लक्षण होने पर रोग को ठीक करने के लिए इस ब्रायोनिया औषधि की 3 शक्ति की मात्रा का उपयोग कर सकते हैं।
6. क्रोटेलस : पतनावस्था में रक्त-दोष उत्पन्न हो जैसे- शरीर में कमजोरी महसूस होना, आंखें लाल होना, नाक, आंत या मलाशय से खून बहना तथा शरीर के कई अंगों से खून बहना, पसीना आना, शरीर की त्वचा और आंखें पीली पड़ना आदि लक्षणों में से कोई भी लक्षण हो तो उपचार करने के लिए क्रोटेलस औषधि की 3 शक्ति से उपचार कर सकते हैं।
7. आर्सेनिक-ऐल्ब : पतनावस्था होने पर उपचार करने के लिए इस औषधि की 3 या 6 शक्ति का उपयोग कर सकते हैं। इस औषधि का उपयोग करते समय कुछ लक्षणों को ध्यान रखना चाहिए- नाक का अगला भाग पतला और ठंडा होना, मुंह पीला या नीला होना, जीभ सूखी, काली या मटमैली होना, शरीर का सुस्त होना, खाने-पीने के बाद उल्टी होना, बार-बार जोर से उल्टी होना, मृत्यु का भय होना, पेट में दर्द होना, जलन होने के साथ बूंद-बूंद करके पेशाब आना, पेशाब करने में परेशानी होना, शरीर का ठंडा होना, ठंडा और लसदार पसीना आना, मूत्राशय या जरायु से खून बहना। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 3 या 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना लाभकारी होता है।
8. लैकेसिस : स्नायु-दोष उत्पन्न होना जैसे- काला खून बहना, शरीर में अधिक सुस्ती आना, जीभ सूखी रहना और कांपना, प्रलाप होना, काले रंग का पेशाब होना, पेट पर कपड़ा न रख पाना आदि लक्षण होने पर इस लैकेसिस औषधि की 6 शक्ति से उपचार करते हैं।
9. आर्ज-नाई या कैंथरिस : पेशाब करने में रुकावट हो रही हो या किसी प्रकार की परेशानी हो रही हो तो उपचार करने के लिए आर्ज-नाई औषधि की 3 या कैंथरिस औषधि-3x मात्रा का उपयोग फायदेमंद है।
10. कैडमियम-सल्फ : पकाशय में जलन और कतरने-जैसा दर्द हो रहा हो, सांस बंद हो रही हो तथा जी मिचला रहा हो, तेज उल्टी आ रही हो या उल्टी करने की इच्छा हो रही हो तो चिकित्सा करने के लिए इस औषधि की 3 या 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग कर सकते हैं।
यदि रोगी को नींद नहीं आ रही हो तो काफिया औषधि की 6 शक्ति से उपचार करना चाहिए। रोगी स्त्री की गर्भ गिरने की आशंका हो तो सिकेलिऔषधि की 3x मात्रा का उपयोग कर सकते हैं। क्रोटेल और लैकेसिस औषधि के प्रयोग करने से पीलिया और पीलिया न बंद हो तो चिकित्सा करने के लिए फास्फोरस औषधि की 3 शक्ति का उपयोग किया जा सकता है। मर्क-सोल-3, जेल्स-3x मात्रा, रस-टक्स-3 तथा विरेट्रम-ऐल्ब-6 शक्ति का प्रयोग सान्निपातिक अवस्था में करने से अधिक लाभ मिलता है। कार्बो-वेज की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग पतनावस्था में कर सकते हैं।
बायोकेमिक मत से चिकित्सा :
नेट्रम-सल्फ औषधि की 3 शक्ति का विचूर्ण का उपयोग सविराम पैत्तिक ज्वर में, पित्त की अधिकता होने पर या शरीर का पीला और हरापन होने की अवस्था में, घास के रंग की या काली उल्टी होने पर किया जाता है। फेरम-फास-12 विचूर्ण से चिकित्सा बुखार की हालत में करते हैं। कैलि-फास-3x मात्रा से पतनावस्था में निस्तेज भाव या हरी या नीले या काले रंग की उल्टी करना और स्राव होने पर उपचार किया जाता है।
उपचार के लिए अन्य उपाय :
  • रोगी के मल, पेशाब तथा उल्टी को इकट्ठा करके अपने मकान से दूर मिट्टी के नीचे गाड़ देना चाहिए।
  • रोगी को ऐसे कमरे में रखना चाहिए जहां हवा अंदर बाहर जाने की सुविधा हो।
  • यदि रोगी का बुखार तेज हो तो इस अवस्था में गर्म पानी से उसके शरीर को पोंछ देना चाहिए।
  • रोगी के कपड़े तथा बिस्तर के वस्त्र को साफ रखना चाहिए।
  • जब रोगी कांप रहा हो तो गर्म पानी में थोड़ा-सा सरसों का चूर्ण मिलाकर उससे फुट-बाथ कराना चाहिए।
  • बुखार उतर जाने पर छेने का पानी पिलाना चाहिए या थोड़ा सा दूध दिया जा सकता है।
  • रोगी को पतले पदार्थों के अलावा कोई भी दूसरी चीज नहीं देना चाहिए।
  • यदि कब्ज की समस्या अधिक हो रही हो तो साबुन के पानी की पिचकारी देने से फायदा हो सकता है।
  • ज्वर की अवस्था में पानी या पीलिया की अवस्था में नींबू का रस सेवन करना चाहिए।
  • रोगी को हमेशा आराम करना चाहिए।


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