कारण-इस ज्वर का कोई विशेष कारण नहीं होता । सर्दी लग जाना, अधिक परिश्रम
असंयमित खान-पान तथा मानसिक-उद्वेग आदि से यह ज्वर उत्पन्न हो सकता है।
लक्षण-इस ज्वर के प्रारम्भ में सम्पूर्ण शरीर में दर्द, सिर में पीड़ा, ठण्ड लगना अथवा
कम्प, वमन आदि लक्षण प्रकट होते हैं । फिर शरीर का तापमान अचानक ही बढ़ जाता है तथा
तीव्र प्यास एवं प्रबल सिरोव्यथा की प्रधानता हो जाती है । नाड़ी की चाल तीव्र रहती है. जीभ
पर मैल चढ़ जाता है । शरीर का तापमान 102° से 104° डिग्री तक बढ़ जाता है । यह उच्च
तापक्रम कई दिनों तक एक जैसा बना रहकर, पांच-सात दिन बाद घटने लगता है। ऐसा ज्वा
प्रायः 10 दिनों से अधिक समय तक स्थायी नहीं रहता ।
चिकित्सा-इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।
फेरम फॉस 6x-यह हर प्रकार के ज्वरों की मुख्य-औषध है । ठण्ड का अनुभव, प्रदाह.
सर्दी, वात ज्वर आदि सभी स्थितियों तथा रोग की प्रारम्भिक अवस्था में इस औषध के प्रयोग
से रोग जड़ से दूर हो जाता है । यदि ज्वर के साथ अन्य उपसर्ग भी हों तो उनके लिए
सुनिर्वाचित औषध-लवण के साथ पर्यायक्रम से इसका प्रयोग करना चाहिए । नाड़ी की तीव्रता
तथा शारीरिक उत्ताप में वृद्धि-इस औषध के निर्देशक लक्षण हैं ।
केलि-म्यूर 6x-ज्वर-रोग में इस औषध का स्थान 'फेरम-फॉस' के बाद आता है।
जीभ पर सफेद मैल तथा कब्ज के लक्षण युक्त ज्वर में 'फेरम-फॉस' के साथ पर्याय-क्रम से
इसका प्रयोग करना चाहिए । प्रदाह तथा रक्त के जमाव की द्वितीयावस्था में यह औषध विशेष
हितकर है।
के लि-फॉस 6x-नाड़ी की गति में असमानता, स्नायविक-ज्वर, तीव्र उत्ताप एवं
स्नायविक-उत्तेजना के साथ कमजोरी के लक्षणों में 'फेरम-फॉस' के साथ पर्याय-क्रम से इसका
प्रयोग करना चाहिए । दुर्गन्धित तथा अत्यधिक मात्रा में आने वाले पसीना के लक्षणों में यह
विशेष हितकर है।
कैलि-सल्फ 6x-तीसरे प्रहर ज्वर का उत्ताप बढ़ जाना इस औषध का निर्देशक-लक्षण
हैं । यदि 'फेरम-फॉस' के सेवन से भी पसीना न आये तो इसके सेवन से पसीना आ जाता है।
रक्त के दूषित हो जाने के कारण आने वाले ज्वर में इसका प्रयोग हितकर सिद्ध होता है । शाम
से आधी रात तक बुखार का बढ़ना एवं उसके बाद घटने के लक्षणों में भी यह हितकर है।
नेट्रम-म्यूर 6x-ज्वर के आरम्भ में जीभ बहुत सूखी दिखाई दे, सर्दी के कारण ज्वर एवं
आँख-नाक से पानी जैसी पतली सर्दी के स्राव के लक्षणों में 'फेरम-फॉस' के साथ पर्याय-क्रम
इसका प्रयोग करना चाहिए। प्रात: से दोपहर तक ठण्ड का अनुभव, प्रात: 10 बजे से सिर-दद
का प्रारम्भ तथा उसके साथ प्यास, थकान एवं कमर के दर्द के लक्षणों में विशेष हितकर है।
निम्नलिखित लक्षणों में निम्नलिखित औषधियों का पर्याय-क्रम से अथवा मिश्रित रूप में
भी प्रयोग हितकर सिद्ध होता है-
फेरम-फॉस 6x, नेट्रम-म्यूर 6x-जब ज्वर चढ़ा हुआ हो एवं सिर में दर्द तथा प्रयास
की अधिकता हो।
फेरम-फॉस 6x, नेट्रम-सल्फ 6x-ज्वर, सिर-दर्द, व्याकुलता, वमन तथा कभी-कभी
दस्त भी हो जाने के लक्षणों में।
नेट्रम-म्यूर 6x, नेट्रम-सल्फ 6x-जिस समय ज्वर न हो तथा उसे रोकना आवश्यक
हो, साथ ही पहले क्विनीन का सेवन कराया जा चुका हो।
विशेष- सामान्य-ज्वर में फेरम-फॉस 12x, कैलि-म्यूर 3x तथा नेट्रम-सल्फ 3x
मिलाकर देने से शीघ्र लाभ होता है । इन औषधियों को दो-दो घण्टे बाद देना चाहिए । • यदि
इनसे लाभ न हो तो कैल्केरिया-फ्लोर 3x, कैलि-फॉस 3x अथवा 12x, फेरम-फॉस 12x,
कैलि-म्यूर 3x, कैलि-फॉस 3x, कैलि-सल्फ 3x, मैग्नेशिया-फॉस 3x, नेट्रम-फॉस 3x,
नेट्रम-सल्फ 3x, तथा साइलिसिया 12x-इन सबको एक साथ गुन-गुने पानी में घोलकर रख
लें तथा 2-2 घण्टे के अन्तर से एक-एक मात्रा पिलायें । • यदि बेहोशी हो तो इस नुस्खे में
नेट्रम-म्यूर 3x और मिला दें। इससे हर प्रकार के सामान्य ज्वर तथा मलेरिया ज्वर भी ठीक हो
जाते हैं। जब एक औषध के प्रयोग से लाभ न हो तभी दो अथवा अधिक औषधियों वाले
नुस्खों को प्रयोग में लाना चाहिए।
टिप्पणी-रोग की अवस्थानुसार अकेली दवाओं का प्रयोग उल्लिखित शक्ति से अधिक
उच्च शक्ति में भी किया जा सकता है।
आनुषंगिक-व्यवस्था- • यदि ज्वर में प्यास के लक्षण हों तो खौलते हुए पानी को
ठण्डा करके रोगी को इच्छित मात्रा में खूब पिलाना उचित रहता है ।
•पर्ल-बार्ली को सिझाकर छान लें तथा उस पानी में थोड़ा-सा नमक अथवा मिश्री के
साथ कागजी नीबू का रस मिलाकर देने से प्यास रुकती है तथा पेशाब भी खुलकर यथोचित
परिमाण में होता है।
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