आरक्त-ज्वर (Scarlet)
परिचय : खसरे तथा चेचक की अपेक्षा आरक्त-ज्वर अधिक होता है। यह भी इन रोगों की तरह ही फैलने वाला रोग है। इस रोग के होने पर खुजली तथा जख्म हो जाता है। छोटे बच्चों को यह रोग अधिक होता है, यह बीमारी स्टेपटो कोसि नामक जीवाणु के कारण अधिक होती है। हवा, दूध आदि चीजों का सेवन करने से यह रोग होता है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को होता है तो सबसे पहले रोगी को ठण्ड लगती है फिर इसके बाद उल्टी होती है, कभी-कभी बेहोशी भी आ जाती है, बुखार एक दो दिन में 104-105 डिग्री तक पहुंच जाता है। यह बुखार तीन से चार दिन तक बना रहता है, फिर धीरे-धीरे उतरने लगता है, उतरने में सात से दस दिन लग जाते हैं, रोगी के गले की ग्रंथियां सूज जाती हैं, किसी भी चीज को निगलने में कठिनाई होती है, जीभ पर सफेद लेकिन उस पर लाल-लाल दाग पड़ जाते हैं, रोगी की भूख मर जाती है, कब्ज भी हो जाती है, पेशाब कम आता है, रोग के पहले दिन के अन्त में या दूसरे दिन चेहरे, गर्दन तथा छाती पर चमकीले लाल दाने हो जाते हैं, ये दाने तुरंत ही शरीर पर फैल जाते हैं, जिस क्रम में ये आते हैं उसी क्रम में ये पपड़ियां बनकर उतरती हैं।
लक्षण :
आरक्त-ज्वर होने पर रोगी को अधिक ठण्ड लगती है, प्यास अधिक लगती है, सिर में दर्द होता है, उल्टियां आती हैं तथा गले में जख्म हो जाता है। 24 घण्टे के अंदर ही शरीर पर लाल रंग के खुजली भरे दाने हो जाते हैं, दाने पहले कंधे और छाती पर और देखते-देखते पूरे शरीर पर फैल जाते हैं। सिर में तेज दर्द होता है, जीभ पर पहले मैल जम जाती है, दाने के आस-पास का भाग लाल हो जाता है, जीभ पर कांटेदार लाल रंग के और उभरे हुए घाव हो जाते हैं। चार से पांच दिनों तक यह बुखार रहने के बाद, शरीर का ताप कम होने लगता है, दानों की लाली और लम्बाई-चौड़ाई भी घटने लगती है और नवें दिन दानें भूसी की तरह झड़ने लगती हैं। यह रोग दो हफ्तों से ज्यादा कभी भी नहीं रहता है।
खसरा और आरक्त ज्वर में अंतर :
खसरे ज्वर से पीड़ित रोगी में सर्दी के लक्षण जैसे- नाक, आंखों से पानी गिरना, छींके आना आदि होते हैं जबकि आरक्त ज्वर में सर्दी के लक्षण ज्यादा नहीं रहते, लेकिन शरीर गर्म और गले में जख्म रहता है। तीन-चार दिन बुखार होने के बाद खसरा निकलता है, लेकिन आरक्त ज्वर में पहले दिन में सारा शरीर लाल हो जाता है।
आरक्त ज्वर तीन प्रकार का होता है :
1. सरल ज्वर:
इस रोग में रोगी के शरीर पर निकलने वाले लाल दाने होते हैं, गला लाल रहता है लेकिन गले में घाव नहीं होता है। अच्छी तरह से उपचार न होने पर भी यह रोग ठीक हो जाता है। इस रोग का उपचार करने के लिए बेलेडोना की 3 शक्ति, एकोनाइट की 3X, सल्फर की 30 या आर्सेनिक 3X मात्रा औषधियों का प्रयोग कर सकते हैं।
2. गले में जख्म वाला आरक्त ज्वर (एन्जिनोइड) :
इस रोग में गला लाल हो जाता है और उसमें घाव हो जाता है, कंधा फूला हुआ रहता है। यह खतरनाक रोग है, इस रोग से पीड़ित रोगी का ठण्ड के दिनों में ठीक से उपचार न करने पर मृत्यु भी हो सकती है। इस रोग को ठीक करने के लिए एपिस की 3 शक्ति, बेलेडोना की 3 शक्ति, मर्क-बिन की 3 शक्ति का विचूर्ण, क्रोटेलस की 3 शक्ति या ऐचिनेशिया की θ मात्रा का उपयोग करना चाहिए।
3. सांघातिक :
इस प्रकार के बुखार होने पर रोगी को तेज बुखार के साथ में अधिक ठण्ड लगती है, शरीर का ताप अस्वाभाविक होता है, रोगी अधिक रोता और चिल्लाता रहता है, रोगी व्यक्ति को बेहोशी भी होने लगती है लेकिन शरीर पर दाने दिखाई नहीं पड़ते हैं, यदि दिखाई देते भी हैं तो लाल न होकर काले रंग के दिखाई पड़ते हैं। कितनी ही बार तो दाने निकलने से पहले ही रोगी की मृत्यु हो जाती है। इस रोग को ठीक करने के लिए 1X, क्यूप्रम ऐसेटिकमकी 3X, आर्सेनिक की 3X मात्रा या एसिडि-म्यूर की 6 शक्ति औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
विभिन्न औषधियों से चिकित्सा-
1. मर्क-कोर- आरक्त ज्वर होने के साथ ही गले की गांठे सूजी हो, गले में जख्म हो, बहुत अधिक लार गिर रहा हो, सांस से बदबू आ रही हो तथा शरीर सुस्त हो तो इस औषधि की 3 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है। इस रोग के साथ ही यदि गुर्दा भी रोग ग्रस्त हो तो मर्क-कोर औषधि से रोग को ठीक करना चाहिए।
2. बेलेडोना-
- आरक्त ज्वर को ठीक करने के लिए बेलेडोना की 1X की मात्रा प्रतिदिन सेवन करना चाहिए जब तक की रोग ठीक न हो जाए।
- बुखार होने के साथ ही गले में घाव होना, शरीर पर लाल रंग के दाने निकलना, इस प्रकार के लक्षण होने के साथ ही रोगी रोता और चिल्लाता रहता है। इस आरक्त ज्वर में बेलेडोना औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है। उपचार करने के लिए इस औषधि की 3 शक्ति की 20 बूंद पानी भरे एक गिलास में डाल लें। इसे एक चम्मच सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। यह औषधि आरक्त-ज्वर को ठीक करने में इतनी ही प्रभावशाली है जितनी यह उसके परिणाम से होने वाले लक्षणों को दूर करने में प्रभावशाली है। इस ज्वर के कारण शरीर पर जख्म हो जाए और बेलाडोना औषधि से वे ठीक न हो रहे हो तब कैमोमिला औषधि का सेवन करने से जख्म ठीक हो जाता है। इस रोग को ठीक होने के बाद जो खांसी रह जाती है वह भी कैमोमिला औषधि से चली जाती है।
- रोगी का चेहरा लाल, गर्म, त्वचा चमकदार, तेज गर्म, रोगी का शरीर इतना गर्म होता है कि छूने से हाथ जलता है, दाने एकसार होते हैं, दाने बिल्कुल लाल, होंठ, मुंह, गला, जीभ लाल, आंखें लाल, खुश्क और जलते हुए, जीभ का रंग स्ट्रॉबेरी जैसा हो जाता है, तेज बुखार रहता है, गले में दर्द होता है, खांसी आती है, सिर में दर्द होता है, शरीर के अंगों में झटके लगते हैं तथा कभी-कभी तो रोगी रोने-चिल्लाने लगता है आदि प्रकार के लक्षण होने पर बेलाडोना औषधि से उपचार करना चाहिए।
- आरक्त-ज्वर को ठीक करने के लिए एपिस औषधि का भी उपयोग किया जा सकता है लेकिन इन दोनों औषधियों में अंतर इतना है कि एपिस औषधि का उपयोग उन रोगियों पर किया जाता है जो गर्म-प्रकृति वाले होते हैं, ठण्ड पसन्द करते हैं, कपड़ा रखना पसन्द नहीं होता है, प्यास नहीं लगती है और बेलाडोना औषधि का उपयोग उन रोगियों पर किया जाता है जो गर्मी पसन्द करते हैं, प्यास होती है।
3. फाइटोलैक्का- आरक्त ज्वर होने के साथ ही गले में घाव दिखाई दे रहे हो तो इस औषधि की 1X मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
4. ऐकोनाइट- आरक्त ज्वर से पीड़ित रोगी को बुखार होने की पहली अवस्था में या हृदय में जलन हो तो उस समय में इस औषधि की 3X मात्रा का उपयोग करने से लाभ मिलता है।
5. आर्सेनिक- आरक्त ज्वर होने के साथ ही रोगी के शरीर पर दाने अच्छी तरह न निकलें या निकलते ही ठीक हो जाए, शरीर ठण्डा रहें, शरीर सुस्त पड़ गया हो, बेचैनी अधिक हो रही हो, प्यास लग रही हो, सूजन हो, शरीर में कभी ऐंठन होती है तो कभी नहीं तथा मूत्र-ग्रंथि में जलन हो रही हो तो इस आर्सेनिक औषधि की ग 3X मात्रा का उपयोग लाभदायक है।
6. एपिस- आरक्त ज्वर से पीड़ित रोगी को तेज बुखार हो, नींद ठीक से न आ रही हो, गला फूला हुआ हो, डंक लगने जैसा दर्द, जीभ लाल पड़ गई हो, जीभ में फफोले पड़ गए हो, दाने होने के साथ ही खुजली हो रही हो और सूजन भी हो गई हो, हृदय में जलन हो रही हो, मूत्र ग्रंथि में जलन हो रही हो तथा गले की शिकायत बहुत अधिक बढ़ जाती है, रोगी गर्मी को सहन न कर सके, कपड़ा उतार फेंके, ठण्ड कमरा पंसद करे तो रोग की इस अवस्था में इस औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
7. एइलैन्थस- नींद न आना, बेहोशीपन महसूस होना, सिर में दर्द होना, चेहरा गर्म और लाल होना, गला फूला हुआ रहता है, नाक से खाल निकाल देने वाला पानी बहता है, दाने काले या नीले होते हैं, तेज उल्टियां आना। इस प्रकार के लक्षण यदि आरक्त ज्वर में हैं तो रोगी का उपचार करने के लिए इस औषधि की 1X मात्रा का उपयोग फायदेमंद है।
8. सल्फर- आरक्त ज्वर से पीड़ित रोगी के शरीर पर लाल चमकीले रंग का दाना हो तथा उसके शरीर पर जलन होने के साथ ही खुजली हो रही हो तो इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग करें।
9. क्यूप्रम-ऐसेट- दानों का बैठ जाना तथा शरीर पर पड़े दाने ऐसे सड़ जाते हैं कि मानो कोढ़ हो गया हो, दानों में खुजली न होना, उल्टी आना, शरीर में ऐंठन होना तथा तेज बुखार रहना। इस प्रकार के लक्षण आरक्त ज्वर में हो तथा इसके साथ ही इस रोग का असर सिर पर हो रहा हो तो इस औषधि की 2X मात्रा का उपयोग लाभदायक है। तेज बुखार होने पर सिर पर गीला कपड़ा रखना चाहिए।
10. कोटेलस- आरक्त ज्वर से पीड़ित रोगी के गले में जख्म होने के साथ ही गले के बाहर की ग्रंथियां सूज जाए तथा कंधे की ग्रंथियां फूली हुई हो तो कोटेलस औषधि की 3 से 6 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
11. एसिड-म्यूर- आरक्त ज्वर होने के साथ ही कान से पीब बह रहा हो या कान से कम सुनाई पड़ रहा हो तो इस औषधि की 2X मात्रा का उपयोग करना चाहिए।
12. हिपर- जैसे ही आरक्त ज्वर हो उसी समय इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। रोगी व्यक्ति के शरीर में सूजन होने के साथ ही मूत्र-दोष हो, वात-रोग हो या हृदय से सम्बंधित कोई रोग हो तो भी इस औषधि से उपचार कर सकते हैं।
13. इचिनेशिया- शरीर के खून का विषैला होना, गले में दर्द होना या गला बैठ जाना, ग्रंथियां बढ़ना या उनमें पीब आ जाना इस प्रकार के लक्षण यदि आरक्त ज्वर से पीड़ित रोगी में है तो उसके इस रोग को ठीक करने के लिए इचिनेशिया औषधि का प्रयोग करें।
14. एरम ट्रिफाइलम- आरक्त ज्वर होने के साथ ही गले में घाव हो जाए, उसके साथ नाक से लगने वाला स्राव हो तथा नथुने पर दर्द हो तो इस औषधि की 3 से 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
15. स्कारलेटीन- इस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग तीनों प्रकार के आरक्त ज्वर को ठीक करने के लिए अन्य औषधियों के बीच-बीच में उपयोग में लेना चाहिए।
16. अमोनिया कार्ब- घातक आरक्त ज्वर होने के साथ ही रोगी के शरीर का खून विषैला हो जाए, सांस भारी हो जाए, चेहरा फूल जाए, दाने काले पड़ जाए, गले में पीब की बदबू आए तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए अमोनिया कार्ब औषधि की 6 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
17. ऐलैनथस- आरक्त-ज्वर में दाने निकलने के साथ ही उनका रंग नीला हो जाता हैं, गला सूजकर नीला पड़ जाता है, टांसिल सूजी हुई रहती है, उनमें घाव हो जाता है, रोगी ठीक प्रकार से होश में नहीं रहता है, वह किसी को पहचान नहीं पाता, भ्रम हो जाता है, बैठ न सके, बेचैनी अधिक होती है, वह रोने-चिल्लाने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों का उपचार करने के लिए इस औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
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