Saturday, November 16, 2019

जुकाम (Cold - Catarrh homoeopathic treatment

जुकाम (Cold (catarrh)

परिचय : शरीर के बाहर की त्वचा तथा शरीर के भीतर श्लैष्मिक-झिल्ली (म्यूकस मेमब्राने) में सूजन हो जाती है जिसके कारण नाक से पानी बहने लगता है। श्लैष्मिक-झिल्ली मुंह से शुरु होकर गुदा तक जाती है। इस नली को भोजननली (एलिमेन्ट्री ट्रेक्ट) कहते हैं क्योंकि इसका काम अन्न को मुंह से आंत तक पहुंचाना है। नाक, श्वास-नलिका आदि शरीर के अन्दर के भाग की श्लैष्मिक-झिल्ली में सूजन होने को जुकाम कहते हैं, इसको अंग्रेजी में नैसल-कटार (नसाल) कहते हैं। यह सूजन पेट, आंतों आदि सब जगह पर हो सकती है। सर्दी लगने के कारण नाक, श्वास-नलिका, स्वरयंत्र आदि में सूजन हो जाती है क्योंकि जुकाम, सर्दी लगना आदि आम बीमारियां हैं।
जुकाम होने की प्रवृत्ति में विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. कैलकेरिया कार्ब : जुकाम से पीड़ित रोगी का शरीर पीला, थुल-थुला बदन, सोने पर सिर के पसीने से तकिये का गीला होना एवं गण्डमाला हो जाना आदि प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए कैलकेरिया कार्ब औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का प्रयोग प्रति आठ घंटे कुछ दिन तक उपयोग करने से रोग ठीक होने लगता है।
2. मर्क सौल :
  • जिन लोगों को अधिकतर जुकाम हो जाता है, उन लोगों के इस रोग को ठीक करने के लिए मर्क सौल औषधि की 6 शक्ति 8-8 घण्टे के अंतर पर कुछ दिन तक किया जा सकता है। इस रोग के ताप को चेक करने के लिए थर्मामीटर का उपयोग किया जा सकता है।
  • रोगी का शरीर हल्का गर्म तथा ठण्डा रहता है, अधिक छींके आती हैं, नाक के अन्दर ऐसा महसूस होता है कि जैसे जख्म हो गया हो, नाक से जलन पैदा करने वाला पानी बहता है, यह पानी पीला-नीला, बदबूदार और इतना गाढ़ा होता है कि ठीक से बहता भी नहीं है, कभी-कभी खूब बहता है, नम मौसम में बढ़ जाता है, गर्म कमरे में भी बढ़ जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है। इस औषधि का श्लैष्मिक झिल्ली के सब स्थानों पर प्रभाव होता है। इसके प्रभाव से मुंह के छाले, मुंह से सम्बंधित और भी परेशानियां, गले के अल्सर रोग भी ठीक हो जाते हैं। इसलिए जुकाम को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है। रोग को ठीक करने के लिए मर्क सौल औषधि की 30 या 200 शक्ति का भी प्रयोग किया जाता है।
3. नैट्रम म्यूर : यदि रोगी गर्म प्रकृति का हो, जिन्हें जुकाम होने पर अधिक ठण्ड महसूस होती है, चेहरे से देखने पर वह रोगी लगता है, कब्ज की शिकायत बनी रहती है, किसी भी समय पर जुकाम हो जाता है। ऐसे रोगियों के रोग को ठीक करने के लिए नैट्रम म्यूर औषधि की 6 शक्ति प्रति आठ घंटे कुछ दिन तक सेवन कराना चाहिए।
4. सल्फर : जुकाम रोग से पीड़ित जिन रोगियों में त्वचा से सम्बंधित शिकायत रहती है, फोड़े-फुंसी, खाज आदि। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए सल्फर औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग प्रति आठ घंटे के अंतर पर कुछ दिन तक करना चाहिए।
पुराने जुकाम होने पर विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. ग्रैफाइटिस : जुकाम रोग से पीड़ित रोगी का नाक हर समय भरा रहता हो, आंख, नाक, कान, गुदाद्वार आदि खुले स्थानों की त्वचा पर फुंसियां हो जाती हैं, कान के पीछे एक्जिमा हो जाता है, कब्ज की शिकायत भी रहती है। इस प्रकार के लक्षण होने के साथ ही रोगी को पुराना जुकाम हो तो रोगी के रोग को ठीक करने के ग्रैफाइटिस औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग प्रति आठ घंटे के बाद कुछ दिनों तक करना चाहिए।
2. आर्स आयोडाइड : ऐसा रोगी जिसे कई दिनों तक जुकाम रहता है, जुकाम हर दिन, हर समय बना रहता है, यह ठीक होने का नाम ही नहीं लेता है। ऐसे कमजोर रोगी जिन्हें आगे चलकर तपेदिक हो जाता है या होने की सम्भावना होती है, रोगी हर समय नाक से सुड़-सुड़ करता रहता है, शरीर में अधिककमजोरी महसूस होती है, दिन पर दिन कमजोरी बढ़ती जाती है, कभी-कभी दस्त भी लग जाता है, ऐसे रोगी जिन्हें अगर तपेदिक रोग भी नहीं हुआ हो तब भी दोपहर के समय में शरीर का तापमान बढ़ जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए आर्स आयोडाइड औषधि की 4x मात्रा का सेवन करके धीरे-धीरे 2x मात्रा पर लाकर दिन में तीन बार लगभग 0.30 ग्राम की मात्रा में देना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने पर रोगी का जुकाम ठीक होने लगता है और तपेदिक रोग होने का खतरा भी नहीं होता है। इस औषधि का सामान्य उपयोग करने के लिए इसकी 2x मात्रा 0.12 ग्राम की प्रति आठ घंटे के अंतर पर कुछ दिनों तक लेने से रोग में आराम मिलता है।
3. नैट्रम म्यूर : रोगी हर समय छींकता रहता है, उसकी नाक बहती रहती है, पनीला जुकाम हो जाता है, नाक कभी बहती है तो कभी नहीं बहती है, ठण्ड महसूस होती है, गर्दन पतला लगने लगता है, कमजोरी और थकावट अधिक महसूस होती है, शरीर में खून की कमी हो जाती है, चेहरा पीला हो जाता है, अधिक कब्ज की शिकायत रहती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगियों के इस पुराने जुकाम को ठीक करने के लिए नैट्रम म्यूर औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है। इसका उपयोग प्रत्येक आठ घंटे के बाद कुछ दिन तक सेवन करना चाहिए।
4. हाईड्रेस्टिस : ऐसा रोगी जो कहता हो कि नजला नाक के पीछे से गले में लगातार गिर रहा है। कई रोगी ऐसे होते हैं जिनकी युस्टेकियन ट्यूब (गले में से कान की तरफ जाने वाली नली) में जुकाम का असर होने लगता है जिसके कारण वह स्थान सूज जाता है या बंद हो जाता है। ऐसे रोगियों के पुराने जुकाम को ठीक करने के लिए हाईड्रेस्टिस औषधि की 3 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। इसकी इस मात्रा का उपयोग प्रति चार घंटे के बाद कुछ दिनों तक सेवन करना चाहिए।
5. ऑरम म्यूर : रोगी की हडि्डयों में दर्द हो, नाक पकी लगती हो, जुकाम हो गया हो और ठीक होने का नाम न ले रहा हो एवं रोगी के शरीर में उत्साह में कमी होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इसकी 3x मात्रा का उपयोग करना चाहिए और इसकी दो बूंद प्रति आठ घंटे पर कुछ दिनों तक प्रयोग करना चाहिए।
6. कैलि बाईक्रोमा : रोगी के नाक से पीला या तारदार, धागे जैसा कफ बहता रहता है। ऐसे जुकाम को ठीक करने के लिए कैलि बाईक्रोमा औषधि की 3x मात्रा का प्रयोग करना चाहिए और इसकी प्रति मात्रा चार घंटे के अंतर पर कुछ दिनों तक सेवन करनी चाहिए। पुराने या नए किसी भी तरह के ऐसे जुकाम जिसमें इस प्रकार के कफ जैसा पदार्थ निकल रहा हो उसे ठीक करने के लिए यह लाभदायक औषधि है।
7. कैलकेरिया कार्ब : रोगी को जुकाम बना रहता है, छूटता नहीं है। नाक से ठोस और पीले रंग का बलगम जैसा पदार्थ बहता रहता है। इस ठोस पदार्थ के कारण नाक में छिछड़े बनते रहते हैं जिन्हें बोलचाल की भाशा में चूहे (क्रुस्टेस) कहते हैं। रोगी रात को जब सांस लेता है तो उस समय उसका नाक इस छिछड़े के कारण बंद हो जाता है और उसे मुंह से सांस लेना पड़ता है। रोगी शीत प्रधान होता है, ठण्ड अधिक लगती है, रोगी कपड़ा ओढ़ता ही चला जाता है, सिर से अधिक पसीना आता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए कैलकेरिया कार्ब औषधि की 30 या 200 शक्ति का उपयोग सप्ताह में एक बार करना चाहिए। 
8. सल्फर : ऐसे रोगी जिसे जुकाम होता ही रहता है, लगातार छींके आती हैं, नाक बंद हो जाता है। नाक से पानी की बून्दे टप-टप बहती रहती हैं। नाक से तीखा (एक्रिड) तथा जलनशील पानी बहता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी स्नान नहीं कर पाता है। गर्मी भी अधिक बर्दाश्त नहीं कर पाता है और न ठण्ड ही बर्दाश्त कर पाता है। जब रोगी किसी कार्य को करने से थक जाता है तो उसे तुरंत ही जुकाम हो जाता है। ऐसे रोगी घी, मक्खन आदि का बहुत शौकीन होता है, 11 बजे उसे ऐसी भूख लगती है कि खाये बगैर बेचैन हो जाता है, रोगी को सर्दी की अपेक्षा गर्मी अधिक महसूस होती है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
9. ट्युबर्क्युलीनम : पुराने जुकाम से पीड़ित ऐसे रोगी जिनके खानदान में टी.बी. का रोगी रह चुका हो, हर समय ठण्ड लगती है, खांसी रहती है, शरीर में हर समय थकावट महसूस होती है, गर्म कमरे में रहना मुश्किल हो जाता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी को समय-समय पर ट्युबर्क्युलीनम औषधि की 200 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

जुकाम होने के शुरूआती अवस्था में विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. ऐकोनाइट : जब रोगी को ठण्ड लगने के बाद कैम्फर का उपयोग करने से ठण्ड का असर खत्म होने लगे, तब आधा-आधा घंटे बाद ऐकोनाइट औषधि की 3 से 8 शक्ति की मात्रा सेवन करें तथा उसके बाद दो घंटे के बाद प्रयोग करे ऐसा करने से जुकाम नहीं होगा। अगर कैम्फर का सेवन न करा हो तब भी ठण्ड लगकर जुकाम होने पर इस औषधि का उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है। सर्दी लगकर गले में खुश्की हो गई हो, कुछ छींके आए और लगे कि जुकाम शुरू होने वाला है, तब इसका सेवन करने से रोग ठीक हो जाता है। यदि जुकाम ठण्ड लगने के कारण से हुआ हो तो रोग को ठीक करने के लिए इसका उपयोग करना लाभदायक होता है। जिन रोगियों के रोग को ठीक करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है उन में इस प्रकार के लक्षण भी होने चाहिए जो इस प्रकार हैं- बेचैनी होना, भयभीत रहना तथा परेशान होना। रात के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होना आदि।

2. कैम्फर : जुकाम होते ही रोगी को ठण्ड लगती है और गर्मी महसूस नहीं होती है ऐसी अवस्था में रोग को ठीक करने के लिए कैम्फर औषधि की 1x मात्रा का उपयोग करना चाहिए और इसका एक छोटा सा टुकड़ा 15-15 मिनट के बाद मुंह में डालते रहना चाहिए। इसकी 1x मात्रा की दो बूंद तब तक लेते रहना चाहिए जब तक ठण्ड लगनी बंद न हो जाएं। इसके उपयोग से जुकाम शुरू में ही रुक जाऐगा क्योंकि कैम्फर जुकाम की ठण्ड को ही दूर कर देगा। कैम्फर होम्योपैथिक औषधियों के असर को खत्म कर देता है इसलिए इसकी शीशी अन्य शीशियों से दूर रखनी चाहिए।

3. जेल्सीमियम : यदि रोगी को सर्दी लगकर जुकाम होने के साथ-साथ बुखार हो जाए, ठण्ड अधिक महसूस हो रही हो, शरीर में दर्द हो रहा हो, बुखार लगने के साथ प्यास बिल्कुल भी नहीं लग रही हो, कंपकंपी लगने लगती हो, शरीर में सुस्ती हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग के शुरुआती समय में इस रोग को ठीक करने के लिए इसकी 1, 3, 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है। रोगी के नाक से पानी ऐसा बहता है जैसा उबला हुआ पानी होता है इस प्रकार के लक्षण होने पर उपचार करने के लिए जेल्सीमियम औषधि का उपयोग लाभकारी है।

पनीले जुकाम में विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. युफ्रेशिया : यदि रोगी को पनीला जुकाम हो, नाक से पानी जैसा स्राव हो रहा हो, वह होठों और नुकरों पर नहीं लगता है लेकिन आंखों से जो पानी निकलता है वह आंखों में चिरमिराहट पैदा करता है, यह रात को ज्यादा परेशान करता है, लेटने पर ज्यादा परेशानी होती है, खांसी हो जाती है जो दिन के समय में बढ़ जाती है। जब रोगी लेटता है तो खांसी तेज होती है, लेटने से खांसी इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि कौआ (यूवुला) कुछ सूजकर लम्बी हो जाती है और लेटने पर तालु को छूती है जिससे खुजली सी होकर खांसी आने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए युफ्रेशियाऔषधि की 3 या 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए।

2. एलियम सीपा : जुकाम को ठीक करने के लिए जेल्सीमियम का उपयोग करने से कुछ लाभ न मिले, नाक और आंखों से पानी जैसा स्राव होता जिससे पानी से आंखों में तो जलन नहीं होती है लेकिन नकुरों और होठों पर जलन होती है, आंखों और नाक से पानी बहे, सिरदर्द हो, बार-बार छींके आए, इस स्राव के द्वारा नाक और होठ छील जाते हैं। शाम को घर के अन्दर, बंद कमरें में, गर्म कमरे में रोग के लक्षण बढ़ने लगते हैं, खुली हवा में लक्षण कम होने लगते हैं लेकिन ठण्डी हवा में सांस लेने से खांसी होने लगती है, स्वरयंत्र छील जाए एवं खांसी ऐसी हो कि गला फटता-सा लगे। इस तरह का पनीले जुकाम को ठीक करने के लिए इस औषधि की 3 शक्ति का उपयोग किया जा सकता है।

3. आर्सेनिकम ऐल्बम : रोगी को पनीला जुकाम हो जाता है अर्थात नाक से पानी बहने लगता है, उस पानी के लगने पर ऐसा लगता है कि ऊपर के होंठ कट रहा है, नाक हर समय बंद रहती है, छींके आती हैं लेकिन छींकने से आराम नहीं आता। नाक के किसी एक स्थान पर ऐसी खुजली होती है मानो कोई पंख को अन्दर छुआ रहा हो, जैसे कई लोग नाक में कपड़े की बती बनाकर छींके लाने के लिए उसे अन्दर फेरा करते हैं लेकिन छींक आने के बाद भी नाक में खुजली सी सुरसुराहट सी बनी रहती है। रोगी को ठण्ड लगने से जुकाम हो जाता है। जैसे ही मौसम बदलता है वैसे ही छींके आने लगती हैं और नाक से अधिक मात्रा में पानी बहते लगता है। जुकाम नाक से शुरु होता है, इसका असर छाती की तरफ अधिक होता है। ठण्ड अधिक महसूस होती है, कपड़े रोगी इतना पहनता है लेकिन फिर भी ठण्ड नहीं जाती। नाक में जलन होती है लेकिन उसे सेकने से रोगी को आराम मिलता है तथा शरीर में बर्फ की सी लहरें उठती हैं। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्सेनिकम ऐल्बम औषधि की 30 या 200 शक्ति का उपयोग करते हैं।

4. आर्सेनिक आयोडाइड : जुकाम रोग से पीड़ित रोगी के नाक से अधिक मात्रा में पानी बहता है, जलनयुक्त स्राव होता है, यह मांस को काटने वाला होता है, यह स्राव शरीर के किसी भी अंग से क्यों न जा रहा हो, यदि यह स्राव श्लैष्मिक झिल्ली पर जहां से बहता है वहां काटने की तरह जलन होती है। इस प्रकार का पनीला स्राव नाक से योनि से कहीं से भी निकल सकता है, लेकिन यदि इसका काटने वाला लक्षण हो तो आर्सेनिक आयोड औषधि से उपचार करने से लाभ मिलता है। रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 2x या 3x का उपयोग करना चाहिए।

5. नैट्रम म्यूर : रोगी के नाक से पानी के समान या गाढ़ा या गाढ़ा-पतला मिला हुआ स्राव होता है, स्राव उबाले या बिना उबाले अण्डे के सफेदी की तरह होती है, वैसे ऐसा जुकाम जिससे रूमाल पर रूमाल भीगते चले जाते हैं मानो नाक से नल की तरह पानी बह रहा हो, छींके अधिक आती हैं, यदि छींकों से जुकाम शुरू हो तो नैट्रम म्यूर औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का तुरंत सेवन करने से जुकाम आना बंद हो जाता है। इस औषधि का उपयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि रोगी में और भी लक्षण होते हैं जो इस प्रकार हैं- ताजी हवा बर्दाश्त नहीं हो पाती, होंठों पर या नकुरों (होंठों और नाक के बीच का भाग) पर पनीले छाले-से पड़ जाते हैं, खांसी के साथ तेज सिर में दर्द होता है, गला बैठ जाता है, खांसते हुए पेशाब भी कुछ निकल पड़ता है, रोगी नमक ज्यादा पसंद करता है, रोया करता है, उदास रहता है, कोई सहानुभूति दिखलाये तो और भी चिढ़ जाता है।

6. नक्स वोमिका :
  • यदि खुश्क और ठण्ड के मौसम में जुकाम हो गया हो, छींके अधिक आ रही हो, नाक से पनीला स्राव हो रहा हो तो रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है।
  • रोगी के सारे शरीर में ठण्ड महसूस हो रही हो, आग के पास बैठने से भी ठण्ड नहीं जा रही हो, कितना ही कपड़ा ओढ़ ले ठण्ड लगती है। हाथ, पैर, पीठ, सारा शरीर ठण्ड से कांपता है, आग के पास से रोगी हटने का नाम नहीं लेता, जरा सी भी ठण्ड हवा लग जाए, जरा सा हिले-जुले फिर भी ठण्ड लगने लगती है, कभी-कभी तो ऐसा होता है कि बाहर की त्वचा पर गर्मी लगने लगती है और अन्दर ठण्ड महसूस होती है। ऐसे लक्षणों पर रोगी के रोग को ठीक करने के लिए नक्स-वोमिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।
  • पानी की तरह नाक से स्राव होता रहता है तथा इसके साथ ही नाक बंद हो जाता है, रात को और खुली हवा में भी नाक बंद हो जाता है, इस प्रकार की अवस्था में रोग को ठीक करने में नक्स वोमिका औषधि उपयोग अधिक लाभदायक होता है।
  • नक्स वोमिका औषधि के उपयोग में यह ध्यान रखना चाहिए कि रोगी मृदु-स्वभाव को हो, चिड़चिड़ा न हो, रोगी उत्तेजनशील नहीं होता है, जरा-सी बात को बर्दाश्त नहीं कर पाता है।
  • जब रोगी के नाक से पनीला स्राव होने के साथ ही छींके अधिक आ रही हो, नकुरों और होंठों पर इससे जलन हो रही हो, दिन में अधिक नाक बह रही हो तथा रात को नाक बंद हो रहा हो, खुली हवा में नाक बंद हो जाता हो, बंद कमरे में नाक बहने लगती हो तो इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए नक्स वोमिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।
7. सीपिया : कई रोगियों के नाक से जुकाम का एक बूंद या मवाद हर समय नाक की नोंक पर लटका रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इससीपिया की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए।

गाढ़े जुकाम में विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
8. हाईड्रैस्टिस : गाढ़े जुकाम को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग भी लाभदायक होता है। रोगी के नाक से तारदार कफ जैसा पदार्थ बहता है लेकिन उसका तारदार स्राव नाक के पिछवाड़े से गले में जोर लगाकर, खींचकर निकालना पड़ता है, रोगी हर वक्त नाक को छिड़कता रहता है क्योंकि नाक के पिछवाड़े में चिपटा हुआ कफ जैसा पदार्थ उसे चैन नहीं लेने देता। गले में रेशा गिरता रहता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है।
9. कैलि बाईक्रोमा : जब रोगी का पुराना जुकाम गाढ़ा हो जाए, डोरी के समान कफ जैसा पदार्थ नाक से बहे, तारदार हो, चिपकता रहता हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इसकी 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है।
10. पल्सेटिला : पुराने जुकाम को ठीक करने के लिए यह औषधि लाभकारी है। रोगी के नाक से गाढ़ा पीला पदार्थ बहता रहता है लेकिन इससे जलन नहीं होती है, रोगी को खुली हवा अच्छी लगती है, बंद कमरे में दम घुटने लगता है, रोगी को गर्मी लगती है, सुबह के समय में नाक से स्राव अधिक होता है, रात के समय में नाक बंद रहती है। खुली हवा में नाक बहने लगती है, बंद कमरे में नाक भी बंद हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए पल्सेटिला औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए। इस औषधि का उपयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि रोगी सहानुभूति नहीं चाहता, सहानुभूति दर्शाने से चिढ़ जाता है।
11. मर्क सौल : रोगी के नाक से गाढ़ा स्राव बहता है जिससे जलन होती है, स्राव सड़ी पीब जैसा होता है, कभी स्राव नीला रंग का होता है, माथे पर सामने की ओर दर्द होता है, रोगी गर्म कमरे में नहीं रह पाता है लेकिन ठण्ड भी बर्दाश्त नहीं कर पाता, ठण्ड ऐसा महसूस होता है जैसेकि वह शरीर में चढ़ रही हो, शरीर से पसीना अधिक निकलता है लेकिन पसीना आने से परेशानी होती है, सांस से बदबू आती है, मुंह से बदबूदार लाल लार बहती है, मुंह तर रहता है लेकिन मुंह तर होते हुए भी तेज प्यास लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए मर्क सौल औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। ऐसी अवस्था में बनफ्शे के काढ़े का भी प्रयोग कर सकते हैं तथा इसके साथ ही मर्क सौल 200 शक्ति की एक मात्रा देने से लाभ होता है। इस औषधि का उपयोग करते समय ध्यान रखना चाहिए कि रोगी में इस प्रकार के लक्षण हों- सिर में दर्द माथे के साइनस में होता है या वहां जमे स्राव के कारण हुआ करता है। जब यह स्राव पककर निकल जाता है तब सिर दर्द भी नहीं रहता है। इसे पकाकर निकालने के लिए इस औषधि का उपयोग करना चाहिए। इसलिये यह साइनस रोग में भी लाभदायक है।
12. नक्स : रोगी की नाक खुली हवा में बंद हो जाती है, बंद कमरे में नाक बहने लगती है, खुली हवा में आराम मिलता है, ज्यों ही बंद कमरे में घुसता है, जुकाम तेज हो जाता है, शाम को भी रोग के लक्षण बढ़ने लगते हैं, जुकाम गाढ़ा होता है, कभी-कभी स्राव के साथ खून भी आता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए।
नाक बंद हो जाने वाले खुश्क जुकाम में विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. नक्स वोमिका : रोगी की नाक बंद रहती है, दिन-रात जब कभी भी नाक बंद रहने के लक्षण दिखाई दें तथा रोगी शीत-प्रकृति का हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
2. स्टिक्टा : रोगी नाक को बार-बार छिड़कता रहता है लेकिन निकलता कुछ नहीं है। नाक की जड़ में भारीपन महसूस होता है, नाक अन्दर से खुश्क हो जाती है, रोगी को नाक में खुश्की का अनुभव होता है, नाक बंद हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए स्टिक्टाऔषधि की 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है।


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