Thursday, January 9, 2020

विटामिन `डी` की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग- Vitamin D deficiency causes importance, sources, benifit. Desiase

विटामिन `डी` की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग-

विटामिन `डीयुक्त खाद्यों की तालिका-
निम्नलिखित खाद्य-पदार्थो में विटामिन `डी´ पाया जाता है। जिन रोगियों के शरीर में विटामिन `डी´ की कमी होती है उनको औषधियों से चिकित्सा करने के साथ-साथ इन खाद्यों का प्रयोग भी करना चाहिए। विटामिन `डी´ प्राय: उन सभी खाद्यों में होता है जिनमें विटामिन `ए´ पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहता है।


  • ताजी साग-सब्जी।
  • पत्तागोभी
  • पालक का साग।
  • सरसों का साग।
  • हरा पुदीना।
  • हरा धनिया।
  • गाजर
  • चुकन्दर
  • शलजम
  • टमाटर।
  • नारंगी।
  • नींबू
  • मालटा।
  • मूली
  • मूली के पत्ते।
  • काड लिवर ऑयल।
  • हाली बुटलिवर ऑयल सलाद।
  • सलाद।
  • चोकर सहित गेंहूं की रोटी।
  • सूर्य का प्रकाश।
  • नारियल
  • मक्खन।
  • घी
  • दूध
  • केला
  • पपीता
  • शाकाहारी भोजन।
  • मछली का तेल।
  • शार्क लीवर ऑयल।
  • अण्डे की जर्दी।
  • बकरे की अण्डग्रंथियां।

विटामिन `डी´ से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें-
  • विटामिन `डी´ का आविष्कार विड्स ने 1932 में किया था।
  • विटामिन `ए´ की भांति विटामिन `डी´ भी तेल और वसा में घुल जाता है पर पानी में नहीं घुलता।
  • जिन पदार्थो में विटामिन `ए´ रहता है विशेषकर उन्हीं में विटामिन `डी´ भी विद्यमान रहता है।
  • मछली के तेल में विटामिन `डी´ अधिक पाया जाता है।
  • विटामिन `डी´ की कमी हो जाने पर आंतें कैल्शियम तथा फास्फोरस को चूसकर रक्त में शामिल नहीं कर पाती हैं।
  • सूर्य के प्रकाश में विटामिन `डी´ रहता है। कुछ चिकित्सक घावों, फोड़ों तथा रसौलियों की चिकित्सा सूर्य के प्रकाश से करते हैं।

  • प्रातःकाल सूर्य के प्रकाश में लेटकर सरसों के तेल की मालिश पूरे शरीर पर की जाए तो शरीर को विटामिन `डी´ पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।
  • सौर ऊर्जा से बने भोजन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन `डी´ उपलब्ध होता है।
  • भोजन को थोड़ी देर तक सूर्य के प्रकाश में रख दिया जाये तो उसमें विटामिन `डी´ पर्याप्त मात्रा में आ जाता है।
  • चर्म रोगों की चिकित्सा के लिए विटामिन `डी´ अति उपयोगी है। इसलिए कई चर्म रोग सूर्य का प्रकाश दिखाने से ठीक हो जाते हैं। विटामिन डी का सूर्य से उतना ही सम्बंध है जितना शरीर का आत्मा से।
  • विटामिन `डी´ मजबूत चमकीले दांतों के लिए अति आवश्यक है।
  • विटामिन `डी´ हडि्डयों को मजबूत बनाता है।
  • विटामिन `डी´ की कमी से हडि्डयां मुलायम हो जाती हैं।
  • विटामिन `डी´ कमी से त्वचा खुश्क हो जाती है।
  • जो लोग अंधेरे स्थानों में निवास करते हैं वे विटामिन `डी´ कमी के शिकार हो जाते हैं।

  • विटामिन `डी´ की कमी से कूबड़ निकल आता है।
  • विटामिन `डी´ की कमी से पेडू और पीठ की हडि्डयां मुड़ जाती हैं या मुलायम हो जाती है।
  • ठण्डे मुल्कों के लोग विटामिन `डी´ की कमी के शिकार रहते हैं।
  • प्राचीनकाल में लोग खुले वातावरण में रहते थे इसलिए वे बहुत कम रोगों के शिकार होते थे।
  • श्वास रोगों को दूर करने के लिए विटामिन `डी´ बहुत असरकारक साबित होता है।
  • गर्भावस्था में विटामिन `डी´ की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। यदि गर्भवती स्त्री को विटामिन `डी´ की कमी हो जाये तो पैदा होने वाले बच्चे के दांत कमजोर निकलते हैं और जल्दी ही उनमें कीड़ा लग जाता है।
  • विटामिन `डी´ के कारण दांतों में कीड़ा नहीं लगता।
  • शरीर में विटामिन `डी´ की कमी से हडि्डयों में सूजन आ जाती है।
  • गर्म देश होने के बाद भी भारत के लोगों में सामान्यत: कमजोर अस्थियों का रोग पाया जाता है।
  • केवल अनाज पर निर्भर रहने वाले लोग अक्सर अस्थिमृदुलता (हडि्डयों का कमजोर होना) के शिकार हो जाते हैं।
  • बच्चे की खोपड़ी की हडि्डयां तीन मास के बाद भी नर्म रहे तो समझना चाहिए कि विटामिन `डी´ की अत्यधिक कमी हो रही है।
  • विटामिन `डी´ की प्रचुर मात्रा शरीर में रहने से चेहरा भरा-भरा, चमक लिए रहता है।
  • पर्दे में रहने वाली अधिकांश स्त्रियां विटामिन `डी´ की कमी की शिकार रहती हैं।
  • जिन रोगियों को विटामिन `डी´ की कमी से अस्थिमृदुलता तथा अस्थि शोथ रहता है वे अक्सर धनुवार्त के शिकार भी हो जाते हैं।

  • भारत में विटामिन `डी´ की कमी को दूर करने के लिए बच्चे को बचपन से ही मछली का तेल पिलाना हितकारी होता है।
  • बच्चों, गर्भावस्था और दूध पिलाने की अवस्था में विटामिन `डी´ का सेवन बहुत जरूरी होता है।
  • व्यक्ति को बचपन के बाद जवानी और बुढ़ापे में भी मछली का तेल नियमित रूप से पिलाते रहना चाहिए। इससे शरीर में विटामिन `डी´ की पर्याप्त मात्रा बनी रहती है।
  • बुढ़ापे में विटामिन `डी´ की कमी हो जाने पर जोड़ों का दर्द प्रारंभ हो जाता है।
  • विटामिन `डी´ की कमी से हल्की सी दुर्घटना हो जाने पर भी हडि्डयां टूट जाती हैं।
  • विटामिन `डी´ की कमी से बच्चों की खोपड़ी बहुत बड़ी तथा चौकोर सी हो जाती है।
  • विटामिन `डी´ की कमी से बच्चों के पुट्ठे कमजोर हो जाते हैं।
  • विटामिन `डी´ की कमी से बच्चों का चेहरा पीला, निस्तेज, कान्तिहीन दृष्टिगोचर होने लगता है।

  • विटामिन `डी´ की कमी के कारण बच्चा बिना कारण रोता रहता है।
  • विटामिन `डी´ की कमी से बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसको कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।
  • यदि वयस्कों के शरीर में विटामिन `डी´ की कमी हो जाये तो प्रारंभ में उनको कमर और कुल्हों की वेदना सताती है।
  • यदि वयस्कों को विटामिन-डी की अत्यधिक कमी हो जाये तो उनके पेडू और कूल्हे की हडि्डयां मुड़कर कुरूप हो जाती हैं।
  • शरीर में विटामिन `डी´ की कमी से सीढ़ियां चढ़ने पर रोगी को कष्ट होता है।
  • शीतपित्त रोग के पीछे शरीर में विटामिन `डी´ की कमी होती है अत: इस रोग की औषधियों के साथ विटामिन `डी´ का प्रयोग भी लाभ प्रदान करता है।
  • विटामिन `डी´ की कमी को दूर करने के लिए कच्चा अण्डा प्रयोग करना हितकर होता है।
  • सर्दियों तथा बरसात के मौसम में बच्चों, बूढ़ों तथा जवानों को समान रूप से विटामिन `डी´ की अधिक आवश्यकता रहती है।

  • विटामिन `डी´ की अधिकता से दिमाग की नसें शक्तिशाली और लचीली हो जाती हैं।
  • विटामिन `डी´ सब्जियों में नहीं पाया जाता है।
  • अण्डा, मक्खन, दूध, कलेजी में विटामिन `डी´ ज्यादा मात्रा में रहता है।
  • ग्रामीण लोगों को सूर्य की किरणों से पर्याप्त विटामिन `डी´ मिल जाता है।
  • ग्रामीण लोगों की अपेक्षा शहरी लोग अधिक विटामिन `डी´ की कमी के शिकार होते हैं।
  • पुरुषों को प्रतिदिन 400 से 600 यूनिट विटामिन `डी´ की आवश्यकता होती है। दूध पीते बच्चों को भी इतनी ही आवश्यकता होती है।
  • अस्थिशोथ (रिकेट्स) तथा निर्बलता में 4 से 20 हजार अंतर्राष्ट्रीय यूनिट विटामिन `डी´ की आवश्यकता होती है।
कैल्शियमयुक्त खाद्य (प्रति 100 ग्राम)

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