Friday, December 13, 2019

Gall stone or biliary calculus, Reason. Symptoms, precautions and Homeopathic medicine पित्त पथरी

पित्त पथरी (Gall stone or biliary calculus)


परिचय :- जब पित्तकोष या पित्तवाहीनली में खाने-पीने के दोष से पैदा हुए पित्तरस जमा होकर पत्थर की तरह सख्त हो जाता है तो उसे पित्त पथरी कहते हैं। पित्त पथरी छोटी, सामान्य और बड़ी हो सकती है। पथरी काली, हरी या खाकी रंग की होती है। पित्त पथरी होने पर जो दर्द उत्पन्न होता है उसे पित्तशूल कहते हैं।

लक्षण :-
पथरी रोग होने पर पेट में हल्का या तेज दर्द होता रहता है। पथरी बनने के बाद जब तक वह पित्तकोष में रहती है तब तक रोगी को कोई कष्ट नहीं होता लेकिन कभी-कभी पेट में हल्का दर्द होता है। जब यह पथरी पित्तकोष से निकलकर पित्तवाहीनली में आ जाती है तो धीरे-धीरे दर्द शुरू होता है। इसके बाद कभी हल्का और कभी तेज दर्द होता है जिसके कारण रोगी परेशान रहता है।

पित्तशूल में दर्द दाएं कोख से शुरू होकर चारों ओर फैल जाता है विशेषकर दाएं कंधे और पीठ तक। इस तरह उत्पन्न पित्तशूल के कारण उल्टी आना, ठंड लगना, पसीना आना, कमजोरी, हिमांग, पीलिया, सांस लेने में परेशानी, बेहोशी आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। जब पित्त पथरी का दर्द शुरू होता है तो कभी-कभी दर्द कुछ घंटे के बाद ही ठीक हो जाता है लेकिन कभी-कभी यह दर्द कई सप्ताहों तक बना रहता है और जब यह पथरी आंत में आ जाती है तो अपने आप दर्द खत्म हो जाता है। आंत में पित्त-पथरी आने के बाद पथरी के कण मल के साथ बार निकल जाते हैं।

पित्त-पथरी का दर्द :-
पित्त-पथरी में दर्द के साथ उल्टी होने का लक्षण नहीं होता है और इसमें दर्द शुरू होने पर रोगग्रस्त अंगों पर गर्म सिंकाई करने या गर्म जायतूनका तेल लगाने से कुछ आराम मिलता है।

मूत्र-पथरी का दर्द :-
मूत्र-पथरी का दर्द पेशाब की नली से शुरू होकर अण्डकोष तक फैल जाता है। रोगी को बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है और पेशाब के साथ खून भी आता है। मूत्र-पथरी के रोगी को पीलिया रोग नहीं होता है।
पित्त पथरी होने पर उसके दर्द को दूर करने लिए तुरंत उपचार करना चाहिए। उपचार करते समय ध्यान रखें कि पित्त पथरी आंतों में से उतर कर मल के द्वारा बाहर निकल जाए और फिर कभी पित्त कोष में न बनें। पथरी को दूर करने के एक उचित आहार लेना आवश्यक है। पथरी के रोगी को भोजन ऐसा लेना चाहिए जो पथरी को गलाने के साथ-साथ शरीर को पूर्ण पोशण भी दें।

विभिन्न औषधी से रोग का उपचार
1. कार्डूयस-मेरियेनस :- पित्त पथरी में दर्द होने के साथ जिगर में भी दर्द होता है विशेषकर जिगर के बाएं भाग में। ऐसे दर्द को दूर करने के लिएकार्डूयस-मेरियेनस- मदर टिंचर औषधि 5 से 10 बूंद की मात्रा में प्रतिदिन 3-3 घंटे के अंतर पर सेवन करना चाहिए।
2. डायोस्कोरिया :- यदि पित्त पथरी का दर्द पित्त कोष से शुरू होकर चारों ओर फैलता हो और चलने-फिरने या मुड़ने से दर्द में आराम मिलता हो तो ऐसे दर्द में डायस्कोरिया औषधि के मूलार्क या 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। यदि दर्द आगे की ओर झुकने से शांत होता हो तो कोलोसिन्थ औषधि का उपयोग उचित होता है।

3. कैल्के-कार्ब या बार्बेरिस :- पित्त-पथरी के दर्द को दूर करने के लिए कैल्के-कार्ब औषधि की 30 से 200 शक्ति का सेवन करना लाभकारी होता है। पित्तशूल में यह औषधि 15-15 मिनट के अंतर पर 3 घंटे तक सेवन करना चाहिए। इस औषधि का 3 घंटे तक सेवन करने के बाद भी दर्द में आराम न मिले तो बार्बेरिस- मदर टिंचर औषधि का सेवन 20-20 मिनट के अंतर पर करना चाहिए।
4. आर्निका :- पित्त पथरी के किसी भी लक्षणों में आर्निका औषधि की 3X मात्रा या 6 शक्ति प्रयोग किया जा सकता है। इस औषधि के प्रयोग से रोग कम होने या दर्द कम होने के बाद चायना औषधि का सेवन तब तक करना चाहिए जब तक तेज दर्द कम होकर बंद न हो जाए।

5. कोलेस्टरीन :- यदि पित्त पथरी रोग से पीड़ित रोगी को तेज दर्द हो तो कोलेस्टरीन औषधि की 2X मात्रा या 3 शक्ति के विचूर्ण का प्रयोग करना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से पित्त पथरी के तेज दर्द में तुरंत लाभ मिलता है।
6. जैतून का तेल :- पित्त पथरी होने पर 2 से 3 दिनों तक जैतून का तेल सेवन करना चाहिए। जैतून का तेल सेवन करने के तुरंत बाद रोगी को नींबू का रस पिलाना चाहिए। इसके बाद 3-4 मिनट बाद फिर थोड़ा सा तेल पिलाकर उसके ऊपर नींबू का रस पिलाएं। इस तरह जैतून का तेल पिलाने के बाद नींबू का रस पिलाने से उल्टी नहीं आती। इस तरह जैतून का तेल पीने से 2 से 3 दिनों में पथरी समाप्त हो जाती है।

पित्त पथरी के दर्द के लिए औषधियां :-
पित्त पथरी के रोग में दर्द को दूर करने के लिए प्रयोग की जाने वाली औषधियां :- चियोनैथस- मदर टिंचर और हाइड्रैस्टिस- मदर टिंचर औषधि का प्रयोग 1 से 10 बूंद की मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। चेलिडोनियम- 2X, जेलसिमियम- 1X, बेलाडोना- 3X और आर्सेनिक- 3X से 30 शक्ति,डिजिटेलिस- 30, लारोसिरेसस- 3 आदि।
पित्त पथरी के दर्द को दूर करने के लिए कोलेस्टेरिनम औषधि की 2 शक्ति का भी प्रयोग किया जाता है। इस औषधि की निम्न या क्रमिक शक्ति न होने पर उच्च शक्ति का भी उपयोग किया जा सकता है। रोग के विभिन्न अवस्थाओं में इस औषधि की 3X मात्रा से 3 शक्ति का विचूर्ण प्रयोग करना लाभकारी होता है।
पित्त पथरी होने पर ऐकोनाइट, नक्स-वोमिका, मर्क, चायना, फास्फो आदि बीच-बीच में दी जा सकती है। चायना, ऐकोनाइट एवं मर्क औषधि का प्रयोग मैलेरिया के बुखार के साथ उत्पन्न पित्त पथरी के रोग में किया जा सकता है।

औषधियों से उपचार करने के साथ कुछ परहेज :-
1. पित्त पथरी होने पर रोगी को हल्की एवं आसानी से हजम होने वाले चीजों का सेवन करना चाहिए।
2. पावरोटी को आग में सेंककर, खूब गर्म पानी में डूबोकर चीनी के साथ खाना चाहिए।
3. रोगी को भूना हुआ सेब खाना चाहिए, इच्छापूर्ण ठंडा पानी पीना चाहिए, रोज खुली हवा में घूमना चाहिए।

4. दर्द से बहुत बेचैन हो जाने पर रोगी को गर्म पानी पिलाए, गर्म पानी के टब में बैठाकर आंतों के यंत्रों के ऊपर बूंद-बूंदकर गर्म जल की धारा देना चाहिए और रोगी के कोख में गर्म पुल्टिस लगाना चाहिए। इससे दर्द में आराम मिलता है। इस तरह के उपायों से दर्द में कमी आ जाने पर और पथरी निकल जाने के बाद दुबारा पथरी न हो इसका उपचार करना चाहिए।
5. इस रोग में रोगी को अपने खान-पान को नियमित करना चाहिए। अपने कार्य को नियमित बनाकर रखना चाहिए।
6. रोगी को शारीरिक कार्य करना चाहिए, स्वच्छ हवा में टहलना चाहिए एवं पानी बहुत अधिक मात्रा में पीना चाहिए। इस तरह नियमों का पालन करने और औषधियों का सेवन करने से पथरी पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है। रोगी के लिए गर्म झरने का पानी पीना अत्यंत उपयोगी होता है।


पित्त पथरी को पुन: होने से रोकने के लिए औषधि से उपचार :-
पित्त पथरी को रोकने के लिए चायना- मदर टिंचर औषधि का प्रयोग करना चाहिए। दुबारा पथरी न हो इसके लिए चायना औषधि की 6X मात्रा या इसकी 6 गोलियां प्रतिदिन 2 बार लेनी चाहिए। इस तरह चायना औषधि का प्रयोग 10 दिनों तक करने के बाद एक दिन छोड़ कर दूसरे दिन इसकी गोलियां लेनी चाहिए। इस तरह 20 दिनों तक औषधि का सेवन करें। इसके बाद 3 दिनों में एक बार औषधि का सेवन करें और फिर चार दिनों के अंतर पर औषधि लें और फिर पांच दिनों के अंतर देकर औषधि लें। इस तरह 10-10 दिनों में एक-एक दिन को छोड़ कर तब तक औषधि लेते रहें जब तक औषधि एक महीने के अंतर पर न आ जाए। एक-एक महीने के अंतर पर औषधि 10 बार लें। इस तरह औषधि का सेवन से पथरी बनने की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और फिर दुबारा यह रोग कभी नहीं होता है।

सावधानी :-
पित्त पथरी के रोगी को अधिक चीनी, चर्बी, ‘वेतसार और चूना युक्त चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा मांस, मछली, तेल की बनी हुई चीजें और सोडा औषधि का सेवन करना भी पित्त पथरी वाले के लिए हानिकारक होता है।


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